रविवार, 24 जनवरी 2021

भीड़ को तो बस इशारा चाहिए!


धुंध में धूमिल हैं दिशाएँ

सीखे-पढ़े को क्या सिखाएँ

विकराल विध्वंस की सामर्थ्य 

समाई उँगलियों में

सघन कुहाँसे से 

फिर-फिर लड़ा जाएगा 

रवि रोपता जा रहा है विचार 

अपनी उज्जवल रश्मियों में

भीड़ के जयकारे 

उत्साह उमंग नहीं 

व्यस्त हैं भय उगलने में

रौंद डालने को आतुर है 

तुम्हारा स्थान 

केन्द्र हो या हाशिए  

भीड़ को तो बस इशारा चाहिए!

© रवीन्द्र सिंह यादव

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ पूर्ण सुन्दर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचना ---केन्द्र हो या हाशिए

    भीड़ को तो बस इशारा चाहिए!

    © रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...