धुंध में धूमिल हैं दिशाएँ
सीखे-पढ़े को क्या सिखाएँ
विकराल विध्वंस की सामर्थ्य
समाई उँगलियों में
सघन कुहाँसे से
फिर-फिर लड़ा जाएगा
रवि रोपता जा रहा है विचार
अपनी उज्जवल रश्मियों में
भीड़ के जयकारे
उत्साह उमंग नहीं
व्यस्त हैं भय उगलने में
रौंद डालने को आतुर है
तुम्हारा स्थान
केन्द्र हो या हाशिए
भीड़ को तो बस इशारा चाहिए!
© रवीन्द्र सिंह यादव
यथार्थ पूर्ण सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ---केन्द्र हो या हाशिए
जवाब देंहटाएंभीड़ को तो बस इशारा चाहिए!
© रवीन्द्र सिंह यादव
प्रभावशाली सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह!बहुत सुंदर सर।
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