उस शहर के पश्चिमी छोर पर
एक पहाड़ को काटकर
रेल पटरी निकाली गई
नाम नैरो-गेज़
धुआँ छोड़ती
छुकछुक करती
रूकती-चलती छोटी रेल
सस्ते में सफ़र कराती
अविकसित इलाक़ों में जाती
तीस साल उपरांत
पुनः जाना हुआ
न पटरी थी न पहाड़ के अर्द्धांश
न हरियाली न कलरव के अंश
न सँकरी पथरीली पगडंडी
न चौकीदार की लाल-हरी झंडी
विकास की तेज़ रफ़्तार
एक पहाड़ लील गई
पर्यावरणीय मुग्ध आशा
मन में ही सील गई
पहाड़ नीस्त-ओ-नाबूद करने से निकले
पेड़,खंडे,बोल्डर,गिट्टी,मुरम,मिट्टी,चूरा
ज्यों शाश्वत से नश्वर हो गए हैं
वे अब समायोजित हो गए हैं
गलियों,सड़कों,रेल पटरियों,पुलों
ख़ामोश आली-शान इमारतों में
अपरिमित इंसानी भूख को करते-करते पूरा
उस पहाड़ ने लालची इंसान से
कुछ भी तो नहीं माँगा था
वह तो अपनी युगों से बसाई बस्ती में भला-चंगा था
उस दिन से अस्तित्त्वविहीन हुए पहाड़ की
सिसकियाँ रोज़-रोज़ सुन रहा हूँ...
प्राकृतिक असंतुलन की ज़ोरदार धमक
रोज़-रोज़ सुनता ही जा रहा हूँ!
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ / WORD MEANINGS
1. नीस्त-ओ-नाबूद = नष्ट होना, समाप्त होना / DESTRUCTION
2. अर्द्धांश = आधा अंश, आधा भाग / HALF PART
3. आली-शान = शानदार, भव्य / GLORIOUS
4. शाश्वत = सदैव रहनेवाला, नष्ट न होनेवाला / PERPETUAL
5. नश्वर = नष्ट होनेवाला, क्षणिक, मिटने योग्य / MORTAL
पहाड़ के रूप में प्रकृति की पीड़ा को बहुत सटीक एवं मार्मिक ढंग से आपने प्रस्तुत किया है... बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 19 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन - - प्रकृति के दर्द को उजागर करती रचना, बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (24-01-2021) को "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर" (चर्चा अंक-3949) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय
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