जेलों में
जिस्म तो क़ैद रहे
मगर जज़्बात
आज़ाद रहे
महामूर्खों के
दिमाग़ की उपज
बेवक़ूफ़ कीड़े-मकौड़े
खाए जा रहे
काँटों के बीच
मनोमालिन्य से परे
आशावान अंतरात्मा के
पलते मीठे बेर
चीख़-चीख़कर
अपने पकने की
मौसमी ख़बर
सैटेलाइट को ही
बार-बार बता रहे
भूख का सवाल
बड़ा पेचीदा है
कंप्यूटर में घुसपैठ
संगीन षडयंत्र के
सबूत बता रहे।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 13 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद! ,
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-02-2021) को "प्रणय दिवस का भूत चढ़ा है, यौवन की अँगड़ाई में" (चर्चा अंक-3977) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
"विश्व प्रणय दिवस" की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
व्वाहहह..
जवाब देंहटाएंसादर..
बहुत ही बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली निर्भीक लेखन।
जवाब देंहटाएंउत्तम
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन।
जवाब देंहटाएंThis is amazing and interesting post on motivational
जवाब देंहटाएं