जीवन के
रीते
तिरेपन बसंत
मेरे बीते
तिरेपन बसंत
बसंत की
प्रतीक्षा का
हो न कभी अंत
प्रकृति की
सुकुमारता का
क्रम-अनुक्रम
चलता रहे
अनवरत अनंत
नई पीढ़ी से पूछो-
कब आया बसंत?
कब गया बसंत...?
कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में
सिमट गया बसंत!
© रवीन्द्र सिंह यादव
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
चित्र साभार: सुकांत कुमार SSJJ एक हरी डाल पर फूल और काँटा करते रहे बसर फूल खिला, इतराया अपने अनुपम सौंदर्य पर काँटा भी नुकीला हुआ, सख़्त...
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 05-02-2021) को
"समय भूमिका लिखता है ख़ुद," (चर्चा अंक- 3968) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
समय कहां थमता है
जवाब देंहटाएंबसंत ऋतु की सुंदर व्यख्या
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
वाह ! सुंदर रचना। तिरपन बसंत भला रीते कैसे हो सकते हैं? बसंत कभी रीता नहीं होता। हाँ, यह सच है कि बसंत के उपहारों को सँभालने और सँजोने में हमारे हाथ सक्षम नहीं रह गए हैं। हम आभासी बसंत के आदी जो हो गए हैं।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 5 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सुन्दर भावाभिव्यक्ति । शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंसादर..
वाह।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर कृति।
जवाब देंहटाएंबसंत ऋतु का सुंदर प्रसंग उठाती मनोहारी कृति..
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