बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

जीवन के रीते तिरेपन बसंत...

 


जीवन के 

रीते 

तिरेपन बसंत

मेरे बीते 

तिरेपन बसंत  

बसंत की 

प्रतीक्षा का 

हो न कभी अंत

प्रकृति की 

सुकुमारता का 

क्रम-अनुक्रम  

चलता रहे 

अनवरत अनंत 

नई पीढ़ी से पूछो-

कब आया बसंत? 

कब गया बसंत...?  

कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में 

सिमट गया बसंत!

© रवीन्द्र सिंह यादव



15 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 05-02-2021) को
    "समय भूमिका लिखता है ख़ुद," (चर्चा अंक- 3968)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. बसंत ऋतु की सुंदर व्यख्या
    वाह बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! सुंदर रचना। तिरपन बसंत भला रीते कैसे हो सकते हैं? बसंत कभी रीता नहीं होता। हाँ, यह सच है कि बसंत के उपहारों को सँभालने और सँजोने में हमारे हाथ सक्षम नहीं रह गए हैं। हम आभासी बसंत के आदी जो हो गए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 5 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर भावाभिव्यक्ति । शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर सृजन सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. बसंत ऋतु का सुंदर प्रसंग उठाती मनोहारी कृति..

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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