गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

बालू पर लिखा था एक नाम

सिंधु तट पर 

एक सिंदूरी शाम 

गुज़र रही थी

थी बड़ी सुहावनी  

लगता था 

भानु डूब जाएगा 

अकूत जलराशि में 

चलते-चलते 

बालू पर पसरने का 

मन हुआ 

भुरभुरी बालू पर 

दाहिने हाथ की 

तर्जनी से 

एक नाम लिखा 

सिंधु की दहाडतीं 

प्रचंड लहरें 

अपनी ओर आते देख 

तत्परता से लौट आया 

अगली भोर फिर गया 

सुखद अचरज से देखा 

एक घोंघा 

वही नाम 

बालू पर लिख रहा था... 

© रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. एक घोंघा
    वही नाम
    बालू पर लिख रहा था...
    क्या बात है!!! भावपूर्ण काव्य चित्र!! +

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रवींद्रजी, आपकी प्रखर लेखनी से इतनी सौम्य रचनाओं का सृजन ! प्रकृति से जोड़ती सरल सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१३-०३-२०२१) को 'क्या भूलूँ - क्या याद करूँ'(चर्चा अंक- ४००४) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  5. घोंघे ने कर लिया था
    आत्मसात वो नाम
    जो लिख आये थे रेत पर
    अपनी उँगली से ।
    अब साहिल पर केवल
    वही नाम बिखरा है ।

    सुंदर से भाव से सजाई रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह! बहुत सुंदर ,खिंचते हुए उसी बिंदू पर जाना और मन माफ़िक दिख जाना बहुत सुंदर ।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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