अमन का गीत
मेरा खो गया है
देश का युवा चेहरा
पर कटे पंछी-सा
गर्दिश में खो गया है
वो फ़ाख़्ता
जो गुलिस्तां में
ग़म-ख़ोर गीत गाती है
उसका गला
अब तो रुँध-रुँधकर
थर्राकर भर्रा गया है
वो चित्रकार
रंग, कूची; कल्पना के साथ
बस बेबस खड़ा है
हालात के नारों को
सुन-सुनकर घबरा गया है
वाणी पर नियंत्रण
क़लम पर पाबंदी
मतभिन्नता की आज़ादी
अभिव्यक्ति के आयाम
सत्ता से तीखे सवाल पर
लेखक का वजूद चरमरा गया
गाँधी की हत्या से
सब्र नहीं जिन्हें
वे अब रोज़-रोज़
चरित्रहत्या कर रहे हैं
यह कौन है
जो शांत माहौल में
उकसावे का परचम लहरा गया?
© रवीन्द्र सिंह यादव
मित्र, हर तरफ़ चैनो-अमन है. हाँ, आपस में लोग गले मिलने के बजाय एक दूसरे के गले काट रहे हैं और एक-दूजे के घर जला कर अपने हाथ ताप ज़रूर रहे हैं !
जवाब देंहटाएंशांति की खोज में तो हमको-तुमको श्मशान या कब्रिस्तान ही जाना होगा.
वैसे ऑल इज़ वेल, बी हैप्पी !
वाह!सराहनीय सृजन आदरणीय रविंद्र जी सर।
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक बधाई एवं अनेकानेक शुभकामनाएँ।
सादर नमस्कार।
चिंतनपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०६-०१ -२०२२ ) को
'लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे'(चर्चा अंक-४३०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपकी चिंता पूरे समाज पूरे देश और पूरे परिवेश के लिए है
जवाब देंहटाएंभाई रविन्द्र जी, आगत का भय और चरमराई नैतिकता का क्षोभ भी है इस रचना में तो तंज भी है व्यवस्था पर ।
गहन रचना।
साधुवाद।
बहुत सुंदर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक कवि मन ही समसामयिक घटनाक्रम पर नज़र रख दूसरों को आगाह करता है | एक सार्थक सृजन जिसमें कवि की चिंता और चिंतन दोनों उद्घाटित होते हैं हार्दिक बधाई सार्थक रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसमाज और देश के वर्तमान हालात का यथार्थ वर्णन
जवाब देंहटाएंचिंतनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएंJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
जवाब देंहटाएंPub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
वाह , बेहतरीन अभिव्यक्ति !
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