शनिवार, 17 नवंबर 2018

चिड़िया और इंसान



चिड़िया और इंसान

हैं सदियों पुराने मित्र,

सभ्यता के सफ़र में

चिड़िया वही इंसान विचित्र।


छोटी-सी ज़िंदगानी में

चिड़िया अपने बच्चों को

सिखाती है ढेरों उपाय

बाज़, उल्लू, बिल्ली, साँप-से

शिकारियों से बचाव।


दूर क्षितिज तक उड़ना

पानी-धूल में नहाना

दाना चुगना 

नीड़ का निर्माण करना   

फुदकना चहचहाना 

साँझ-सकारे सामूहिक गान

सामूहिकता में सौहार्द सहमति 

समृद्धि हेतु क़ाएम रखना।


इंसान अपने बच्चों को

जीवनभर सिखाता है

जीने की गूढ़ कला,

फिर भी अब तक

इंसानी-समाज  

मन-मुआफ़िक़ क्यों नहीं ढला?
   
© रवीन्द्र सिंह यादव

16 टिप्‍पणियां:

  1. खूब कहा आदरणीय 👌
    बहुत ही सुन्दर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार अनीता जी चर्चा में शामिल होने के लिये।

      हटाएं
  2. वाह! अत्यंत सारगर्भित!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय विश्व मोहन जी उत्साहवर्धन के लिये।

      हटाएं
  3. क्या उम्दा बात कही है आपने "सभ्यता के सफर में चिड़िया वही इंसान विचित्र"। पहली बार आपके कविता लेखन से रूबरू हुए और पहली ही नज़र में छा गए आप। इसी तरह प्रकाशित करते रहिये। पढ़ कर अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार जनक जी अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया के ज़रिये आत्मीय उत्साहवर्धन करने के लिये।

      हटाएं
  4. वाह ! छोटी सी सुंदर सारगर्भित रचना पठनीय और संग्रहणीय है। पाठशाला में बच्चों को भी पढ़ाई सुनाई जानी चाहिए ये रचना। अंतर्निहित सीख मन पर गहरी छाप छोड़ गई.....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया मीना जी अपनी टिप्पणी ने रचना का भाव विस्तार करते हुए जो सद्भावना जोड़ी है वह मन को प्रसन्नता देती है।
      आपके ब्लॉग का नाम "चिड़िया" अपने आप में परिपूर्ण है।

      हटाएं
    2. ये नाम आदरणीय रंगराज अयंगर सर ने दिया है रवींद्रजी। सारा श्रेय सर को।

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभै रवीन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिये। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।



      हटाएं
    2. कृपया आभै को आभार पढ़ें। धन्यवाद।

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सादर नमन सर। सादर आभार मनोबल बढ़ाने के लिये।

      हटाएं
  7. वाह क्या खूब चित्रण किया है ,इंसान और चिड़िया
    चिड़िया वहीं की वहीं इंसान का बदला रूप।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया ऋतु जी इस चर्चा में सम्मिलित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु।

      हटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...