मंगलवार, 27 नवंबर 2018

धूप (वर्ण पिरामिड )




ये 
धूप 
जागीर  
है सूर्य की  
तरसाती है 
महानगर में 
बेबस इंसान को। 







लो 
आयी 
रवीना 
चीरकर 
घना कुहाँसा 
एहसास लायी 
मख़मली धूप-सा। 



आ 
गयी 
सर्दी भी 
मख़मली 
धूप लेकर 
कुहाँसा छा रहा 
दृश्य अदृश्य होने। 



वो 
देखो 
सेकती 
गुनगुनी 
धूप छज्जे पे 
अख़बार लिये 
चाय पीती दादी माँ।  
 © रवीन्द्र सिंह यादव




9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर पिरामिड

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  2. वाह!!रविन्द्र जी ,बहुत खूबसूरत पिरामिड !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. Very nice post...
    Welcome to my blog for new post.

    जवाब देंहटाएं
  4. सर्दी की गुनगुनी धूप से वर्ण पिरामिड।
    सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर वर्ण पिरामिड...
    ये
    धूप
    जागीर
    है सूर्य की
    तरसाती है
    महानगर में
    बेबस इंसान को।
    महानगरों की गगनचुंबी इमारतों में धूप के लिए तरसते लोग...
    बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. धूप का मख़मली एहसास कराते सुन्दर पिरामिड। बहुत अच्छे लगे ये पिरामिड।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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