शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

यह जो बरसात आई है

यह जो बरसात 

आई है

हर बार की तरह 

फिर इस बार

सुहानी तो बिल्कुल नहीं

कोढ़ में खुजली-सी

लग रही है इस बार

अभी बाढ़ से आई तबाही

है चर्चा में

कल सूखे की चर्चा होगी

अभी मरनेवालों की चर्चा है

कल 

फ़सल-भूखे की चर्चा होगी

करोना महामारी से 

जूझ रही दुनिया में

अब मौतों के आँकड़े

दबाए जा रहे हैं

वैक्सीन बनने के 

समाचार

कमाऊ मंशा से 

फैलाए जा रहे हैं

पीड़ित मानवता का 

दम घुट रहा है

कोई दोनों हाथों से 

दौलत समेट रहा है

कोई सरेआम लुट रहा है

सरकार-समाज

ज्ञान-विज्ञान

धर्म-ज्योतिष

तर्क-पाखंड 

न्याय-मज़लूम 

सामाजिक मूल्य-अवसरवादी मूल्यविहीन अमूल्य 

सभी वक़्त की कसौटी पर

अपनी-अपनी परीक्षा दे रहे हैं

फ़िलहाल

पावस ऋतु में  

साफ़ हवा में

आशंकित 

हम 

सांस ले रहे हैं।    

© रवीन्द्र सिंह यादव
   

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३१ 'पावस ऋतु' (चर्चा अंक -३७७४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है.......http://halchalwith5links.blogspot.com/ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. वैक्सीन बनने के
    समाचार
    कमाऊ मंशा से
    फैलाए जा रहे हैं
    पीड़ित मानवता का
    दम घुट रहा है
    कोई दोनों हाथों से
    दौलत समेट रहा है
    सही कहा आपने ऐसे समय में भी कमाने के नये नये आसार अपनाये जा रहे हैं साधारण जुकाम-खाँसी को कोरोना पॉजिटिव बताकर खूब पैसे ऐंठे जा रहे गरीब जनता दोहरी मार झेल रही है......
    बहुत सटीक समसामयिक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर और सटीक रचना आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह बेहतरीन सृजन बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,क्या खूब लिखा है । यहाँ सभी अपनी-अपनी झोली भरने में लगा है ,बेचारा आम आदमी ......।

    जवाब देंहटाएं
  7. सामायिक पनपती मनोवृति का सही आंकलन करती सहज सुंदर अभिव्यक्ति।
    सचमुच सभी अवसर का लाभ उठाने में जुटे हैं और साधारण आम कहलाने वाला हर आपदा भुगत रहा है ।
    यथार्थ पर सटीक सृजन‌

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय सर,
    बहुत ही सामयिक सटीक और झकझोरती हुई कविता। सच में यह वर्षा ऋतु हर साल की तरह सुंदर नहीं।
    कोरोना के आसपास हो रहे भ्र्ष्टाचार का बहुत ही सटीक वर्णन।
    सुंदर रचनाओं के लिये एवम मेरा अनुरोध मैन कर मेरे ब्लॉग पर आने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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