एक अनाड़ी नाविक
उतरा नदी में
इस यक़ीन के साथ
कि पार लग जाएगा
माहौल से बेपरवाह
मौसम के पैटर्न से अनभिज्ञ
मझधार तक पहुँचा
क्रुद्ध हवा ने
अचानक आकर
विश्वासघात किया
छूने लगी नीर नदी का
मनमानी ताक़त से
उठती-गिरती
तीव्र लहरों में
नाव का बैलेंस
डगमगा गया
अकेली नाव
दूर बहती दिखाई दी!
©रवीन्द्र सिंह यादव
उतरा नदी में
इस यक़ीन के साथ
कि पार लग जाएगा
माहौल से बेपरवाह
मौसम के पैटर्न से अनभिज्ञ
मझधार तक पहुँचा
क्रुद्ध हवा ने
अचानक आकर
विश्वासघात किया
छूने लगी नीर नदी का
मनमानी ताक़त से
उठती-गिरती
तीव्र लहरों में
नाव का बैलेंस
डगमगा गया
अकेली नाव
दूर बहती दिखाई दी!
©रवीन्द्र सिंह यादव
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(17-07-2020) को
"सावन आने पर धरा, करती है श्रृंगार" (चर्चा अंक-3765) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम।
कुछ दिनों से रोज़ पांच लिंकों के आनंद पर आ रही हूँ।
आज आपकी प्रस्तुति पढ़ी। बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक प्रस्तुति थी। बहुत कुछ सीखने को मिला।
वहीं ओर आपका नाम मिला और मैं आपमे ब्लॉग र आ गई। आपकी यह कविता हम सब को बहुत आवश्यक सन्देश देती है कि बिना जानकारी कोई भी कार्य करना घातक सिद्ध होता है। विशेष कर हम युवाओं के लिए ध्यान में रखने की बात है।
सर आपसे एक अनुरोध है। मैं अपनो स्वरचित कविताएं अपबे ब्लॉग काव्यतरंगिनी पर डालती हूँ। कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें। लोंक कॉपी नहीं कर पा रही पर यदि आप नेरे नाम पर जायें तो आप मेरे प्रोफाइल पर पहुंच जाएंगे। वहाँ नेरे ब्लॉग के नाम पर क्लॉक करियेगा, वो आपको मेरव ब्लॉग तक ले जाएगा। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए आभारी रहूँगी।
धन्यवाद।
गहन विचार वर्तमान समजिक स्थिति को व्यक्त करती कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं सराहनीय सृजन.समय परिवेश का यथार्थ चित्रण नाविक को हवाओं का ज्ञान समय रहते होता तब शायद परिस्थिति कुछ और होती.क्षोभ दर्शाती हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति आदरणीय सर .
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
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