लाशों की दुर्दशा के
अनचाहे मंज़र
मुझे सोने नहीं देते
ये लाशें मुझसे पूछतीं हैं
गुलाबी रातों के हसीं ख़्वाब में
कब तक सोए रहोगे?
भारत की साख़ पर
दुनिया को क्या जवाब दोगे?
अभावों में स्वभाव
ऐसे बदले कि
चिता का सामान न जुटा सके
अंतिम संस्कार से
वंचित हुए पार्थिव शरीर
कुछ बहा दिए गंगा में
कुछ रेत में दबा दिए...
माँसाहारी पशु-पक्षी
लाशों को नौंचते दिखे
वीडियो बनानेवाले
वीभत्स कृत्य देखते रहे
आँधी-तूफ़ान भी आकर
उड़ाकर रही-सही सूखी रेत
रह-रहकर शव उघाड़ते रहे
करोना महामारी की
दूसरी लहर ने
ढाया ऐसा क़हर
छाया है मातम ही मातम
गाँव-शहर!
© रवीन्द्र सिंह यादव
आँख मूंद कर और नाक बंद कर सो जाओ फिर नदियों में बहती ये लाशें तुमको परेशान नहीं करेंगी.
जवाब देंहटाएंलाशों की दुर्दशा ने आपको तो सोने नही दिया सर लेकिन कुछ लोग तो अब भी चादर से मुँह ढकाकर सो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी सशक्त,साहसी लेखनी को मेरा बारंबार प्रणाम 🙏
सटीक रचना
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी भाव
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