सोमवार, 24 मई 2021

गंगा में बहतीं लाशें

लाशों की दुर्दशा के 

अनचाहे मंज़र 

मुझे सोने नहीं देते 

ये लाशें मुझसे पूछतीं हैं 

गुलाबी रातों के हसीं ख़्वाब में 

कब तक सोए रहोगे?

भारत की साख़ पर 

दुनिया को क्या जवाब दोगे?

अभावों में स्वभाव 

ऐसे बदले कि

चिता का सामान न जुटा सके  

अंतिम संस्कार से 

वंचित हुए पार्थिव शरीर

कुछ बहा दिए गंगा में 

कुछ रेत में दबा दिए... 

माँसाहारी पशु-पक्षी 

लाशों को नौंचते दिखे 

वीडियो बनानेवाले 

वीभत्स कृत्य देखते रहे 

आँधी-तूफ़ान भी आकर 

उड़ाकर रही-सही सूखी रेत

रह-रहकर शव उघाड़ते रहे

करोना महामारी की

दूसरी लहर ने 

ढाया ऐसा क़हर 

छाया है मातम ही मातम 

गाँव-शहर!   

© रवीन्द्र सिंह यादव  

  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आँख मूंद कर और नाक बंद कर सो जाओ फिर नदियों में बहती ये लाशें तुमको परेशान नहीं करेंगी.

    जवाब देंहटाएं
  2. लाशों की दुर्दशा ने आपको तो सोने नही दिया सर लेकिन कुछ लोग तो अब भी चादर से मुँह ढकाकर सो रहे हैं।
    आपकी सशक्त,साहसी लेखनी को मेरा बारंबार प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...