मंगलवार, 1 सितंबर 2020

मधु,मानव और मधुमक्खियाँ

परागरहित चंपा पुष्प

उपेक्षित भाव की 


पीड़ा से गुज़रता है

जब मधुमक्खियाँ

उससे किनारा कर जातीं हैं

पराग चूसने

नीम के फूलों तक चलीं जातीं हैं

पराग देकर

फूल खिल जाते हैं

फूल होने पर इठलाते हैं

मानव-ज़ात को

शहद का छत्ता देकर

मधुमक्खियाँ 


अतिशय आनंद से 

आप्लावित हो चहकतीं हैं

वे आशान्वित रहतीं हैं

वे जानतीं हैं

उनका श्रम-ज्ञान ज़ाया नहीं होगा

अनेक फूलों से 


संग्रहित हुए पराग से 

निर्मित निर्मल मधु

उस मानव में बसी 


कलुषता मिटाएगा

जो मानव-मानव में भेद करता है

किसी न किसी फूल का पावन पराग

उसकी जिव्हा से मस्तिष्क तक


ह्रदय से रग-रग तक

पवित्र विचारों की

मिठास घोलेगा


मन-बुद्धि-संस्कार के 

सँकरे रास्ते खोलेगा

और वह एक दिन

प्रकृति को धन्यवाद बोलेगा। 


© रवीन्द्र सिंह यादव 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को  "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज"   (चर्चा अंक 3812)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट रचना! हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

    जवाब देंहटाएं

  3. किसी न किसी फूल का पावन पराग

    उसकी जिव्हा से मस्तिष्क तक

    ह्रदय से रग-रग तक

    पवित्र विचारों की

    मिठास घोलेगा

    पर ऐसा नहीं हो रहा मानव कृतिम मधु का सेवन कर रहा है और प्रकृति को धन्यवाद तो दूर प्रकृति का विनाश कर रहा है नतीजा देखकर भी आँख मूँदे बैठा है।
    बहुत सुन्दर सार्थक एवं चिन्तनपरक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. अनूठी कृति , अलग सा विषय सार्थक विचारों के साथ ।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब आदरणीय रवीन्द्र जी ! दूर की कौड़ी लाये हैं मधुमक्खियों के संघर्ष के माध्यम से | उनका श्रमसाध्य संचित मधु मिठास का पर्याय है | सुंदर रचना चम्पा , मधुमक्खियों और मधु के बहाने से | सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,खूबसूरत सृजन । मधुमक्खियाँ कितना श्रम करती हैं ,मधु निर्माण के लिए ,पर ये मानव ..कहाँ मिठास लाता है ...अपनी स्वार्थ सिद्धी में ही निरंतर मशगूल रहता है

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...