पराजयबोध लिए
बैठा है मानव
करोना-काल के
दुष्कर दुर्दिन में
भोर-बेला में
शांत है नदी तट
दोपहर में
सन्नाटे को
गले लगाए है
वयोवृद्ध विशाल वट
विरह वेदना में
विचलित है
सिंदूरी संध्या
झील में डूबता
रक्ताभ सूरज
तलाश रहा है
विस्फारित नेत्रों से
प्रकृति का
कुशल चितेरा
उदासियों का
गठा गट्ठर लादे
बीतेगी अपनी गति से
अतल अवसाद की
स्याह ओढ़नी ओढ़े
झुँझलाई यामिनी
काल का कलन करता
अभिमान को रौंदता
आएगा एक और सबेरा।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बैठा है मानव
करोना-काल के
दुष्कर दुर्दिन में
भोर-बेला में
शांत है नदी तट
दोपहर में
सन्नाटे को
गले लगाए है
वयोवृद्ध विशाल वट
विरह वेदना में
विचलित है
सिंदूरी संध्या
झील में डूबता
रक्ताभ सूरज
तलाश रहा है
विस्फारित नेत्रों से
प्रकृति का
कुशल चितेरा
उदासियों का
गठा गट्ठर लादे
बीतेगी अपनी गति से
अतल अवसाद की
स्याह ओढ़नी ओढ़े
झुँझलाई यामिनी
काल का कलन करता
अभिमान को रौंदता
आएगा एक और सबेरा।
© रवीन्द्र सिंह यादव
हाँ हँसती-खिलखिलाती,गुनगुनाती
जवाब देंहटाएंशुभ्र किरणों का उपहार लिये
सुबह तो आयेगी
क्योंकि तम कितना भी गहन हो
काल के अविराम रथ के
पहियों तले कुचला ही जायेगा।
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बहुत सुंदर प्रकृति के मन के भाव उकेरने का कवि का सार्थक प्रयास।
आशा से भरी रचना।
लिखते रहिये। शुभकामनाएँ।
सादर।
काल चक्र अपने नियम से पीछे नही हटेगा। आज निराशा का घोर अंधेरा है,कल आशा का सूर्य भी उदय होगा। वाह्ह्ह्ह्ह!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर बेहद उम्दा,सकारात्मक पंक्तियाँ प्रस्तुत की आपने। इस संकटकाल में इन पंक्तियों की आवश्यकता थी।
साभार सादर प्रणाम 🙏
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंपक्का आयेगा आमीन।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक शब्द-चित्रण ...
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