रविवार, 26 अप्रैल 2020

फ़सल और बारिश

यह घनघोर घटा

काली-काली

मुझे नहीं लगी

कतई निराली

करोना-काल में

आफ़त की क्या कमी थी 

जो फ़सल बर्बाद करने 

असमय बारिश भी आ गई

आसमान में लपलपाती 

मेघप्रिया सौदामिनी

खलिहान जलाती  

गूँजती भरपूर  

डरावनी गड़गड़ाहट

किसान के दुश्मन

सरकारी फ़रमान  

हुआ करते  

अरे बादल तुम तो 

थोड़ा संयम धरते। 


© रवीन्द्र सिंह यादव 

1 टिप्पणी:

  1. महामारी की त्रासदी पर मौसम का बिगड़ा मिज़ाज असहनीय है। काश!किसानों की फरियाद बादल सुन पाता। सुंदर शब्दावली के प्रयोग से रची गयी सार्थक अभिव्यक्ति।
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