पुकारने पर
खटखटाने पर
पीटने पर
साँकल बजाने पर
खुल जाया करता था
कॉल-बैल दबाने पर भी
खुला करता था
घर का दरवाज़ा
अब मोबाइल
अथवा रिमोट से
खुलता है
आधुनिक दरवाज़ा
क्या हमारा दिमाग़ भी
यांत्रिक/आधुनिक हो गया है?
दुर्घटना में घायल
सड़क पर तड़पते
दंगों में जान लेते
वहशी दरिंदों से
जान की भीख माँगता
निरपराध लाचार
मॉब-लिंचिंग में
खाल उधड़वाता
हड्डियाँ तुड़वाता
झेलता लाठी-सरियों के प्रहार
परिवेश में गूँजती चीख़-पुकार
दारुण हाहाकार
बच्चों पर भीषण अत्याचार
शहरों से गाँव की ओर
पैदल पलायन करते
हिम्मती मज़दूरों के
पाँवों के लहूलुहान छालों से
लाल होतीं सड़कें
प्रबुद्ध मानवता का
सुकून छीनते मंज़र
हमारे सुन्न दिमाग़ के
मज़बूत दरवाज़े पर
लगे ताले को
मज़बूत दरवाज़े पर
लगे ताले को
अब नहीं खोल पाते
मुँह में ज़ुबान है
पर नहीं बोल पाते।
©रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार २१ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मुँह में ज़ुबान तो है पर दिमाग के दरवाज़े पर तो ताला पड़ा है भक्ति का सो कोई कुछ बोले कैसे?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा आपने आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
ताले दिमाग के जाने कब खुलेंगे इंसानों के
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति