सोमवार, 27 अप्रैल 2020

कसाईघर

कसाईघर / कसाई-ख़ाने से 

करोना-काल में 

निरीह पशुओं की 

बेबस चीख़ 

अब शांत शून्य में 

नहीं गूँजती होगी

नाली की ग़ाएब लाली 

अर्थ ढूँढ़ती होगी  

मांसाहार के लिए 

दुकानों में सजाकर रखे

पशु-पक्षी / जानवर 

कुछ दिन और सुरक्षित हैं

मनुष्य द्वारा 

लायसेंसशुदा 

मौत का फंदा 

कसने की क्रिया-प्रक्रिया  

अभी अक्रिय है 

हाँ,लॉक डाउन में

कुछ पराधीन परवश जीव 

भूख / बीमारी से

दुनिया छोड़ गए होंगे।  

© रवीन्द्र सिंह यादव 

1 टिप्पणी:

  1. कसाईखाना ...सटीक चिंतन मार्मिक अभिव्यक्ति।
    ---
    चंद दिन की मोहलत में निरीह की साँसे बची हैं
    बेबसों की जान सस्ती पर मौत की आँखें लगी हैं।

    जवाब देंहटाएं

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