कसाईघर / कसाई-ख़ाने से
करोना-काल में
निरीह पशुओं की
बेबस चीख़
अब शांत शून्य में
नहीं गूँजती होगी
नाली की ग़ाएब लाली
अर्थ ढूँढ़ती होगी
मांसाहार के लिए
दुकानों में सजाकर रखे
पशु-पक्षी / जानवर
कुछ दिन और सुरक्षित हैं
मनुष्य द्वारा
लायसेंसशुदा
मौत का फंदा
कसने की क्रिया-प्रक्रिया
अभी अक्रिय है
हाँ,लॉक डाउन में
कुछ पराधीन परवश जीव
भूख / बीमारी से
दुनिया छोड़ गए होंगे।
© रवीन्द्र सिंह यादव
करोना-काल में
निरीह पशुओं की
बेबस चीख़
अब शांत शून्य में
नहीं गूँजती होगी
नाली की ग़ाएब लाली
अर्थ ढूँढ़ती होगी
मांसाहार के लिए
दुकानों में सजाकर रखे
पशु-पक्षी / जानवर
कुछ दिन और सुरक्षित हैं
मनुष्य द्वारा
लायसेंसशुदा
मौत का फंदा
कसने की क्रिया-प्रक्रिया
अभी अक्रिय है
हाँ,लॉक डाउन में
कुछ पराधीन परवश जीव
भूख / बीमारी से
दुनिया छोड़ गए होंगे।
© रवीन्द्र सिंह यादव
कसाईखाना ...सटीक चिंतन मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं---
चंद दिन की मोहलत में निरीह की साँसे बची हैं
बेबसों की जान सस्ती पर मौत की आँखें लगी हैं।