बुधवार, 6 मई 2020

चित्रकार

रंग 

तूलिका 

कैनवास 

उँगलियाँ 

कोई कलाकृति उकेरने में अक्षम हैं 

चित्रकार का चित्त-चितवन 

सचाई तलाशने 

आदर्श-लोक के सफ़र पर हैं 

जहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प

ज़ख़्मी होकर सो गई है। 

© रवीन्द्र सिंह यादव      
  

5 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08-05-2020) को "जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध"
    (चर्चा अंक-3695)
    पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. लाज़बाब सृजन सर ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं


  3. जहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प
    ज़ख़्मी होकर सो गई है।.. वाह! अक्षम अँगुलिया का सक्षम सृजन. लाजवाब आदरणीय सर 👌

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. अद्भुत कुछ शब्दों में कितना कुछ कह दिया भाई रविन्द्र जी।
    बेहतरीन सृजन।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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