रंग
तूलिका
कैनवास
उँगलियाँ
कोई कलाकृति उकेरने में अक्षम हैं
चित्रकार का चित्त-चितवन
सचाई तलाशने
आदर्श-लोक के सफ़र पर हैं
जहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प
ज़ख़्मी होकर सो गई है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
तूलिका
कैनवास
उँगलियाँ
कोई कलाकृति उकेरने में अक्षम हैं
चित्रकार का चित्त-चितवन
सचाई तलाशने
आदर्श-लोक के सफ़र पर हैं
जहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प
ज़ख़्मी होकर सो गई है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (08-05-2020) को "जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध"
(चर्चा अंक-3695) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"
लाज़बाब सृजन सर ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प
ज़ख़्मी होकर सो गई है।.. वाह! अक्षम अँगुलिया का सक्षम सृजन. लाजवाब आदरणीय सर 👌
बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअद्भुत कुछ शब्दों में कितना कुछ कह दिया भाई रविन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।