जीवन के भयावह झंझावात से
गुज़र रहे हैं हम
उजाले धुँधले हुए जाते हैं
छा रहा अनचीता तम ही तम
उन्हें देखो
जो भयमुक्त होकर डट गए हैं
सुरीला संगीत
फूलोंभरा बिस्तर
रिश्तों की डोर
किताबोंभरी अलमारी
मुस्कुराती बांसुरी
शर्म से लाल हुए गुलमोहर की छांव
परे रख
आत्मप्रचार से परे
करोना वायरस से लड़ने
इस ज़मीं को बेहतर बनाने
अकेले कंधे पर हाथ रखने
वक़्त की सलवटें मिटाने
जुट गए हैं
दर्द की बूँदें बरसने के बाद
इंद्रधनुषी आभा की आस में
जीवन के प्रति अनुराग के बीज
बस्ती-बस्ती के प्रभामंडल में बोने।
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ
झंझावात = आँधी, तूफ़ान, प्रचंड वेग से बहती वायु
अनचीता = सहसा घटित होने वाला,अनचाहा
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आत्मप्रचार से परे
जवाब देंहटाएंकरोना वायरस से लड़ने
इस ज़मीं को बेहतर बनाने
अकेले कंधे पर हाथ रखने
वक़्त की सलवटें मिटाने
जुट गए हैं ...
ऐसे परोपकारियों के दम पर ही मानवता का अस्तित्व कायम है ।
गुलमोहर के साथ ऐसी भावभीनी रचना को नमन🙏
वाह! कोरोना कर्मवीरों की शान में क्या खूब लिखी आपने यह कविता। वाह बेहद उम्दा। सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन सर ,गुलमोहर को देखने का ये नजरिया भी हो सकता हैं,आपके बेहतरीन सोच के लिए सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंकोरोना कर्मवीर और गुलमोहर...
जवाब देंहटाएंजेठ की तपती धरा पर गुलमोहर मुस्कराकर छाँव बाँटता है ऐसे ही कोरोना के आतप से परेशान धरा पर कोरोना कर्मवीर अपनी सेवा दे रहे हैं...
वाह!!!
अद्भुत लाजवाब सृजन।
उन्हें देखो
जवाब देंहटाएंजो भयमुक्त होकर डट गए हैं
सुरीला संगीत
फूलोंभरा बिस्तर
रिश्तों की डोर
किताबोंभरी अलमारी
मुस्कुराती बांसुरी
शर्म से लाल हुए गुलमोहर की छांव
परे रख
आत्मप्रचार से परे
करोना वायरस से लड़ने
बहुत सार्थक सामायिक परिस्थितियों को गुलमोहर से बहुत सुंदर सेसे जोड़ा है ।
अप्रतिम।