सफ़ेद कबूतर उड़ा साहिल से
समुद्र में डूबते सूरज को देखने
उड़ता गया... उड़ता ही गया!
अब समंदर के ऊपर था
बस अँधेरा...घना अँधेरा!
रेत न पीछे नज़र आया
न बहुत आगे तक...
सफ़ेद कबूतर ने
लौटने का निश्चय किया
जहाँ से उड़ा था
उस ओर मुड़ा था
थक-हारकर
साहिल पर आ गिरा था
ज्वार आया तो
सुरक्षित ज़मीन पा गया था
सांसें सामान्य हुईं
प्राची में लालिमा देख
नवजीवन पाकर
जिजीविषा के साथ
उड़ गया ज्ञात परिवेश में
अज्ञात सफ़र के अनुभव सुनाने।
©रवीन्द्र सिंह यादव
समुद्र में डूबते सूरज को देखने
उड़ता गया... उड़ता ही गया!
अब समंदर के ऊपर था
बस अँधेरा...घना अँधेरा!
रेत न पीछे नज़र आया
न बहुत आगे तक...
सफ़ेद कबूतर ने
लौटने का निश्चय किया
जहाँ से उड़ा था
उस ओर मुड़ा था
थक-हारकर
साहिल पर आ गिरा था
ज्वार आया तो
सुरक्षित ज़मीन पा गया था
सांसें सामान्य हुईं
प्राची में लालिमा देख
नवजीवन पाकर
जिजीविषा के साथ
उड़ गया ज्ञात परिवेश में
अज्ञात सफ़र के अनुभव सुनाने।
©रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 02 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलाजवाब ।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक पहलू बहुत प्रबल है रचना में , बहुत अच्छा लगा।
जिजीविषा आखिर जीत गई।
सुंदर सृजन।