सीमा पर चीन
आक्रामक रुख़ के साथ
भारत को उकसा रहा है
शांति की आशाओं को धूमिल कर रहा
रेलगाड़ियाँ इरादतन राह भटककर
मज़दूरों की जबरन मौत का कारण बन रहीं हैं
तपती सड़कों पर भूखे-प्यासे
थके-हारे पैदल चलते
साधनहीन बच्चे-बूढ़े-जवान
स्त्री-पुरुष श्रमिक
अपनी विवशताओं-विसंगतियों से
भारत की सड़कों पर
दीनता-हीनता का
रक्तरंजित महाकाव्य रच रहे हैं
बेरोज़गार युवाओं में
भविष्य की आशंकाओं का
तूफ़ान हिलोरें ले रहा है
किसान नौकरशाही की चक्की में
बेरहमी से पिस रहा है
अर्थ-व्यवस्था अनिश्चितता के भँवर में
फँसकर माक़ूल निर्णय की प्रतीक्षा में
खीझती-चीख़ती जा रही है
भूखी-प्यासी गाय खूँटे से बँधी रँभा रही है
करोना योद्धाओं की दारुण दशा किसे भा रही है
हानि-लाभ का गणित
कुछ दिमाग़ों को तंग कर रहा है
कुछ में उमंग-तरंग भर रहा है
न्याय का असहज होता जाना
स्वाभाविक होता जा रहा है
तब तुम उपलब्धियों का जश्न मना रहे हो...?
मुझे इसमें कतई शामिल नहीं होना है!
© रवीन्द्र सिंह यादव
आक्रामक रुख़ के साथ
भारत को उकसा रहा है
शांति की आशाओं को धूमिल कर रहा
रेलगाड़ियाँ इरादतन राह भटककर
मज़दूरों की जबरन मौत का कारण बन रहीं हैं
तपती सड़कों पर भूखे-प्यासे
थके-हारे पैदल चलते
साधनहीन बच्चे-बूढ़े-जवान
स्त्री-पुरुष श्रमिक
अपनी विवशताओं-विसंगतियों से
भारत की सड़कों पर
दीनता-हीनता का
रक्तरंजित महाकाव्य रच रहे हैं
बेरोज़गार युवाओं में
भविष्य की आशंकाओं का
तूफ़ान हिलोरें ले रहा है
किसान नौकरशाही की चक्की में
बेरहमी से पिस रहा है
अर्थ-व्यवस्था अनिश्चितता के भँवर में
फँसकर माक़ूल निर्णय की प्रतीक्षा में
खीझती-चीख़ती जा रही है
भूखी-प्यासी गाय खूँटे से बँधी रँभा रही है
करोना योद्धाओं की दारुण दशा किसे भा रही है
हानि-लाभ का गणित
कुछ दिमाग़ों को तंग कर रहा है
कुछ में उमंग-तरंग भर रहा है
न्याय का असहज होता जाना
स्वाभाविक होता जा रहा है
तब तुम उपलब्धियों का जश्न मना रहे हो...?
मुझे इसमें कतई शामिल नहीं होना है!
© रवीन्द्र सिंह यादव
उसे कहाँ जरूरत है ऐसे लोगों की जिनकी आँखें खुली हुई हैं। बाकि सारे शामिल हैं आँखों पर मास्क लगाये लोग। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंक्या बात करते हैं रवींद्र जी! मज़दूरों की हालत के सबसे बड़े गुनहगार तो विपक्षी दल हैं जिनके हाथों में न पुलिस है और न ही सरकारी खज़ाना! बिचारे सत्ताधीश इनकी तो तनिक भी ग़लती नहीं। काहे इन्हें बेवज़ह कोसते हैं अपनी जली-कटी कविता के माध्यम से। ये विपक्षी ही तो थे जिन्होंने बिना उचित नीति और तैयारी के लॉक डाउन का आदेश दे दिया और गब्बर सिंह/ तुग़लक़ की तरह राजधानी परिवर्तन का आदेश ठीक आठ बजे सुना दिया।अब सारे रकम जामऊ साहित्यकार सत्य की खोज करने में सफल हुए और विपक्षी पार्टियों को इन मज़दूरों की हालत का ज़िम्मेदार ठहरा दिया। ओह हो हो....... ! बड़ा कष्ट है! सादर
हटाएंजश्न के शोर में अपनी गलतीयों पर पर्दा डालने का प्रयास है शायद। बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंमज़दूर का क्या! बेचारा! लाचार! मजबूर! भोजपुरी में कहावत है, "अबरा के मौगी, सबके भौजी"! क्या पक्ष! क्या विपक्ष! क्या भक्त! क्या विभक्त! सबकी विलासिता के साधन। जब तक ज़िंदा रहो, शारीरिक विलासिता के और मर जाओ तो बौद्धिक विलासिता के! जश्न ही जश्न!
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