रविवार, 3 मई 2020

वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन

ज्ञात नहीं 

अब कहाँ हो तुम

मैं आज भी हूँ 

उसी स्मृति में गुम 

जब तुम्हें सी ऑफ़ करने

तीन मई नवासी

इकत्तीस साल पूर्व    

रेलवे स्टेशन पर 

प्लेटफ़ॉर्म चार पर 

उस ट्रैन में बैठाया था 

जो ले गयी तुम्हें 

मुझसे बहुत दूर 

वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन 

लगी थी बड़ी क्रूर 

बस तुम्हारी झुकीं पलकें 

जादुई मुस्कुराहट

मड़राती रहती है 

आज भी मेरे आसपास दिन-रैन

 ट्रैन की खिड़की से 

निहारता मासूम मुखड़ा ले   

तीव्र गति से ओझल हो गई थी 

तुम्हें मुझसे सुदूर ले जाती   

वह लाल रंग की ट्रैन!

जो आज भी सरसराती हुई 

चल रही है मेरे ज़ेहन में

यादों की ट्रैन दौड़ रही है

नॉस्टाल्जिआ की पटरियों पर

बेधड़क धड़धड़ाती हुई 

शुक्र है कि वह बुलेट ट्रैन नहीं थी।     

© रवीन्द्र सिंह यादव

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