मंगलवार, 19 मई 2020

प्रवासी श्रमजीवी


घर-गांव से 

हज़ारों किलोमीटर दूर

अपनों से बहुत दूर 

तुम चले जाते हो 

फूस-माटी की झोंपड़ी छोड़कर

माँ-बाप,भाई-बहन,भार्या,बच्चों को छोड़कर  
  
जीविका की तलाश में

मीडिया ने नाम दिया है 

प्रवासी मज़दूर तुम्हें हुलास में  

क्रूर करोना को ज्ञात नहीं

हालात के तूफ़ान से 

सतत लड़ने की 

तुम्हारी जद्दोजेहद की ज़िद

तुम लिख रहे हो क्रान्ति-गीत

 जीवन संघर्ष की पावन प्रीत 

लहूलुहान होकर सड़कों पर 

ऐसा कहने लगे हैं वादविद  

देख रहा है भारत 

आज तुम्हारी अंत्येष्टि की दुर्दशा 

सड़ी-गली तुम्हारी लाश की वीभत्स दशा 

अंतिम संस्कार की बदलती मनोदशा

सामाजिक विसंगतियों की दशा-दिशा 

तुम्हारे ख़ून के धब्बों से 

धुँधली हो गई है कहकशाँ!

ये निरपराध थे / हैं  

मैं लिख रहा हूँ सुनो आसमाँ! 

©रवीन्द्र सिंह यादव

6 टिप्‍पणियां:

  1. रवीन्द्र जी

    हम्म्म... आज कल जो रोज़ सुनने को मिलता उसे दर्शाती रचना

    काश पहले की सरकारों ने इनका भूतकाल स्वारा होता और काश आज की सर्कार इनके लिए कुछ करे उससे भी ज़्यदा हम सब अपने अपने आईने साद करे और असलियत पहचाने

    तुम लिख रहे हो क्रान्ति-गीत
    जीवन संघर्ष की पावन प्रीत

    बहुत अच्छा रचना सृजन


    कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जानो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे। .

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २२ "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" (चर्चा अंक-३७११) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम्हारी जद्दोजेहद की ज़िद
    तुम लिख रहे हो क्रान्ति-गीत
    ,सत्य कहा आपने , मार्मिक सृजन सर ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. देख रहा है भारत
    आज तुम्हारी अंत्येष्टि की दुर्दशा
    सड़ी-गली तुम्हारी लाश की वीभत्स दशा
    अंतिम संस्कार की बदलती मनोदशा
    सही कहा इस बार जो मजदूरों की दुर्दशा सामने आयी उसका बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक शब्दचित्रण
    किया है आपने.... ।

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदय स्पर्शी सृजन।
    व्यवस्था पर प्रहार करता सार्थक यथार्थ।
    गहन चिंतन से निकला सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर
    यथार्थ को दर्शाती
    कविता है आपकी

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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