रेल-पटरी के ऊपर
वर्षों पहले बने
जर्जर ज़ंग लगे लोहे के पुल से
गुज़रते हुए
चिंतनीय सवाल
मुनिया ने बापू से पूछा-
"एक दिन
यह पुल गिर जाएगा
न जाने
दिन का होगा कौनसा पहर
चुपचाप अकेला गिरेगा
या बरपाएगा
गुज़रते लोगों पर क़हर?
फिर किसी की लापरवाही
तय करने के लिए
आयोग बनेगा
दोष तय करने का
कब योग बनेगा?"
बापू ने कहा-
"ख़ाली दिमाग़ शैतान की दुकान!
यह नहीं कोई विचार महान
कुछ और सोचो
तुम्हें बड़ा आदमी बनना है।"
"बड़ा आदमी नहीं!
संपूर्ण औरत!
अपने चेहरे पर
मुखौटा क्यों भला?"
मुनिया चिहुँक पड़ी
मुनिया की समझदारी पर
बापू की आँखें फटीं रह गयीं।
© रवीन्द्र सिंह यादव
वर्षों पहले बने
जर्जर ज़ंग लगे लोहे के पुल से
गुज़रते हुए
चिंतनीय सवाल
मुनिया ने बापू से पूछा-
"एक दिन
यह पुल गिर जाएगा
न जाने
दिन का होगा कौनसा पहर
चुपचाप अकेला गिरेगा
या बरपाएगा
गुज़रते लोगों पर क़हर?
फिर किसी की लापरवाही
तय करने के लिए
आयोग बनेगा
दोष तय करने का
कब योग बनेगा?"
बापू ने कहा-
"ख़ाली दिमाग़ शैतान की दुकान!
यह नहीं कोई विचार महान
कुछ और सोचो
तुम्हें बड़ा आदमी बनना है।"
"बड़ा आदमी नहीं!
संपूर्ण औरत!
अपने चेहरे पर
मुखौटा क्यों भला?"
मुनिया चिहुँक पड़ी
मुनिया की समझदारी पर
बापू की आँखें फटीं रह गयीं।
© रवीन्द्र सिंह यादव
वाह! अनुज रविन्द्र जी ,क्या बात कही है आपनें! ,ऱंग-रोगन कर असलियत को ढांपने की कोशिश यहाँ अक्सर की जाती है ..इन मुखौटों के चलते अक्सर हो जाया करते हैं कुछ हादसे ..।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(०३-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-१९ 'मुखौटा'(चर्चा अंक-३६९०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
बहुत खूब लिखा आपने सर। इन मुखौटों के पीछे का सत्य बड़ा भयानक साबित हो सकता है उसके बाद बस दोष लगाने और आयोग बनाने के अलावा और कुछ ना होगा।
वाह... शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंछोटी सी मुनिया, बड़ी सी बात
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंगजब!!
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में कितना कुछ कहता सृजन ।
वाह्ह्ह