सूखे-अकड़े
पत्ते खड़के
तो ज्ञात हुआ
वायु जाग रही है
ग़रीब की बिटिया ने
जो दीपक जलाया था
साँझ ढले
बस थोड़े-से तेल में
बाती भिगोकर
जलकर बुझ गया है
भानु के चले जाने के बाद भी
रौशनी की याद
ताज़ा करने का चलन
अब विश्वास में ढल गया है
अँधेरा डस रहा है उजाले को
तो ज्ञात हुआ
अँधेरे से लड़ते रहने के लिए
आँखें बंद कर लेना
अंधकार को कोसना / आलोचना
प्रतीक्षा प्रभामय प्रभात की
पर्याप्त नहीं
सुननी नहीं
कोई कल्पित कहानी
उजास चाहते हो...
हिलो-डुलो
जाँचो-परखो
ख़ून में है रवानी?
पूछा प्रश्न अपने आप से।
© रवीन्द्र सिंह यादव
पत्ते खड़के
तो ज्ञात हुआ
वायु जाग रही है
ग़रीब की बिटिया ने
जो दीपक जलाया था
साँझ ढले
बस थोड़े-से तेल में
बाती भिगोकर
जलकर बुझ गया है
भानु के चले जाने के बाद भी
रौशनी की याद
ताज़ा करने का चलन
अब विश्वास में ढल गया है
अँधेरा डस रहा है उजाले को
तो ज्ञात हुआ
अँधेरे से लड़ते रहने के लिए
आँखें बंद कर लेना
अंधकार को कोसना / आलोचना
प्रतीक्षा प्रभामय प्रभात की
पर्याप्त नहीं
सुननी नहीं
कोई कल्पित कहानी
उजास चाहते हो...
हिलो-डुलो
जाँचो-परखो
ख़ून में है रवानी?
पूछा प्रश्न अपने आप से।
© रवीन्द्र सिंह यादव
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (02-06-2020) को
"हमारे देश में मजदूर की, किस्मत हुई खोटी" (चर्चा अंक-3720) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
वाह रवींद्र जी ...अँधेरे से लड़ते रहने के लिए
जवाब देंहटाएंआँखें बंद कर लेना
अंधकार को कोसना / आलोचना
प्रतीक्षा प्रभामय प्रभात की
पर्याप्त नहीं ... बहुत खूब
अति सुंदर .. 💐💐
जवाब देंहटाएंअँधेरे से लड़ते रहने के लिए
जवाब देंहटाएंआँखें बंद कर लेना
अंधकार को कोसना / आलोचना
प्रतीक्षा प्रभामय प्रभात की
पर्याप्त नहीं
बहुत सटीक....
उजाले के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ेगी
सुन्दर संदेश देती लाजवाब कृति
वाह!!!