बहुत बिछाते हो
जाल और फंदे
कैसे हो
उजड्ड-विवेकवान बंदे?
गिलहरी को
अब नहीं रहा
पार्क में
तुम्हारी मूँगफलियों का इंतज़ार
वह तो गूलर कुतर रही है
ईर्ष्या, छलावा, हड़बड़ाहट
बुद्धि में उन्माद की मिलावट
तुम्हारा ही लिबास कुतर रही है
करोना-काल की कल्पनातीत आँखमिचौनी
संदेह और विश्वास की गलियों में
प्रतिकूलता से जूझते हुए
अनगढ़, अनघ, अनन्यचेता की तलाश में
शहतीर के ढेर-सी
जमावट मुर्दों की
हाहाकार के महासागर में
नख-शिख डुबोती भौतिकता
मार्ग की बाधा है क्या?
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ
अनगढ़= जो प्राकृतिक रूप में हो जिसे तराशा, छीला, गढ़ा न गया हो,बे-डौल, अक्खड़
अनघ = पवित्र, निरापद,निरपराध
अनन्यचेता = जिसका चित एक में ही लगा हो
जाल और फंदे
कैसे हो
उजड्ड-विवेकवान बंदे?
गिलहरी को
अब नहीं रहा
पार्क में
तुम्हारी मूँगफलियों का इंतज़ार
वह तो गूलर कुतर रही है
ईर्ष्या, छलावा, हड़बड़ाहट
बुद्धि में उन्माद की मिलावट
तुम्हारा ही लिबास कुतर रही है
करोना-काल की कल्पनातीत आँखमिचौनी
संदेह और विश्वास की गलियों में
प्रतिकूलता से जूझते हुए
अनगढ़, अनघ, अनन्यचेता की तलाश में
शहतीर के ढेर-सी
जमावट मुर्दों की
हाहाकार के महासागर में
नख-शिख डुबोती भौतिकता
मार्ग की बाधा है क्या?
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ
अनगढ़= जो प्राकृतिक रूप में हो जिसे तराशा, छीला, गढ़ा न गया हो,बे-डौल, अक्खड़
अनघ = पवित्र, निरापद,निरपराध
अनन्यचेता = जिसका चित एक में ही लगा हो
सुंदर शब्दावली से सुसज्जित रचना मेंं व्यंग्य का तीर
जवाब देंहटाएंलक्ष्य भेदने में सक्षम है।
अप्रत्यक्ष रुप से किसी कुटिल से कुपित मनोभावों की आक्रोशित अभिव्यक्ति प्रतीत हो रही।
गूढ़ अर्थ समेटे सुंदर सृजन।
वाह! आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने। सार्थक और सटीक 👌
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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